नई दिल्ली,(विजयेन्द्र दत्त गौतम) : विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस का मुकाबला करने के लिए एंटीबायोटिक के ज्यादा इस्तेमाल को लेकर चेतावनी दी है। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस गेब्रेसियस ने मीडिया से कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं के ज्यादा इस्तेमाल से खतरनाक बैक्टीरिया की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। यह जानलेवा साबित हो सकता है।एक समय के बाद एंटीबायोटिक दवाओं के ज्यादा सेवन से खतरनाक बैक्टीरिया मजबूत हो जाते हैं। गेब्रेसियस का कहना है कि कोरोना के केवल उन मरीजों के इलाज में एंटीबायोटिक की आवश्यकता होती है जिनमें बैक्टीरिया के संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। इस तरह के मरीज कम ही होते हैं। बाकी कम गंभीर मरीजों को एंटीबायोटिक थेरेपी नहीं दी जानी चाहिए।

गेब्रेसियस का कहना है कि हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध का खतरा है। यह साफ है कि दुनिया गंभीर रूप से अहम एंटीमाइक्रोबियल दवाओं का इस्तेमाल करने की क्षमता को खो रही है। हालांकि कई गरीब देशों में इन दवाओं का बहुत ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है।डब्ल्यूएचओ भी चीन से परेशान हो गया था क्योंकि वह कोरोना शोध का डाटा साझा नहीं कर रहा था। यह दावा एपी ने अपनी रिपोर्ट में किया है। इसमें कहा गया था कि चीन डब्ल्यूएचओ के साथ डाटा साझा करने में आनाकानी कर रहा था। उसने कोरोना से जुड़े जेनेटिक मैप, जीनोम की संरचना से जुड़े अहम तथ्य कई हफ्तों तक छुपाए रखे थे।
ऐसा शक है कि चीन ने शोध की कई जानकारियों को डब्ल्यूएचओ से छुपाई है। डाटा साझा करने को लेकर डब्ल्यूएचओ के अधिकारियों और चीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच ईमेल के जरिए कई बार बातचीत हुई थी। डब्ल्यूएचओ ने एक मेल में लिखा है कि चीन की इन हरकतों से टीके की शोध की शुरुआत में देरी हुई।

डब्ल्यूएचओ के कार्यकारी निदेशक माइक रियान ने इटली के डॉक्टर के दावे को खारिज करते हुए कहा है कि कोरोना कमजोर नहीं हुआ है। इसलिए लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए। इटली के शीर्ष डॉक्टर अल्बर्टो जैंगरीलो ने कहा था कि उनके देश में चिकित्सीय तौर पर कोरोना का अस्तित्व खत्म हो चुका है। इसके अलावा डब्ल्यूएचओ की एपिडेमियोलॉजिस्ट मारिया वान का कहना है कि ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जिससे यह कहा जा सके कि कोरोना की स्थिति बदल गई है।