नई दिल्ली,(विजयेन्द्र दत्त गौतम) मद्रास हाईकोर्ट ने अखबारों के प्रकाशन पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया है। कोर्ट ने कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण लाकडाउन में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीाडिया को मिली छूट को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जीवंत मीडिया की बहुत अहमियत है। पीठ ने इस संबंध में 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के अनुराधा भसीन बनाम केंद्र सरकार के मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें भी प्रेस की स्वतंत्रता को बरकरार रखा गया। तमिलनाडु सरकार के महाधिवक्ता पीएच अरविंद पांडियन के तर्को से सहमति जताते हुए पीठ ने कहा कि रिकार्ड व मीडिया रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि समाचार पत्रों के माध्यम से या कागज की सतह से कोरोना बहुत व्यापक तरीके से फैल रहा है सही नहीं है। इस विषय में अभी बहुत सीमित शोध हुआ है। केवल आशंका या मामूली संभावना के आधार पर समाचार पत्रों के प्रकाशन पर रोक लगाना उचित नहीं है। याचिकाकर्ता टी. गणेश कुमार ने दलील दी थी कि अखबार लाने वाला लड़का यदि संक्रमित है तो अखबारों के जरिये और लोगों को भी संक्रमण हो सकता है। याचिकाकर्ता के इस तर्क कि समाचार पत्रों से कोरोना वायरस फैल सकता है लिहाजा इनका प्रकाशन रोक दिया जाये, को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि मात्र आशंका के आधार ऐसा नहीं किया जा सकता। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एन.किरुबाकरन और जस्टिस आर.हेमलता की पीठ ने कहा कि अगर समाचार पत्रों के प्रकाशन पर रोक लगाई जाती है तो यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत न केवल प्रकाशक, संपादक बल्कि पाठक के भी मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के समान होगा। पीठ ने कहा कि एक जीवंत मीडिया भारत जैसे किसी भी लोकतांत्रिक देश की थाती है। अतीत में आजादी की लड़ाई के दौरान इसी मीडिया ने अंग्रेजों के शासन के खिलाफ राय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद आपातकाल के काले दौर में भी इसकी उल्लेखनीय भूमिका रही। प्रिंट मीडिया न केवल लोगों के विचारों को परिलक्षित करता है बल्कि सरकारों की निगरानी करता है। यह उच्च पदों पर व्याप्त भ्रष्टाचार और अंधेरगर्दी को भी उजागर करता है।