चंडीगढ़,(विजयेन्द्र दत्त गौतम) : किसान देश व प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं और अर्थव्यवस्था के उत्थान में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है, यह बात इनेलो नेता चौधरी अभय सिंह चौटाला ने एक बयान में कही। उन्होंने बताया कि देश का 50 प्रतिशत मजदूर कृषि पर निर्भर हैं। 1950 तक देश की जीडीपी में कृषि का 50 प्रतिशत योगदान था जो अब घटकर लगभग 16 प्रतिशत ही रह गया है। हमारा देश दूध उत्पादन में पहले स्थान और फल-सब्जियों के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। परंतु इतना कुछ होते हुए भी कृषि घाटे का धंधा बनकर रह गया है क्योंकि जो भी सरकारें आई उनकी नीयत और नीतियों की वजह से किसान दिन-प्रतिदिन कर्जदार होता गया और उसकी फसल का उचित भाव न मिलना उसकी गरीबी का सबसे बड़ा कारण बना।
उन्होंने बताया कि लॉकडाउन होते ही एक माह के अंदर प्रदेश की सरकार ने जनता के सामने हाथ फैला दिए और कहा कि उनके पास वित्तीय साधनों कमी है जिसके लिए किसान और आम आदमी सरकार की सहायता करे। इस समय सभी संस्थाएं बंद पड़ी हैं परंतु किसान इतनी त्रासदी के बावजूद भी सभी को अनाज उपलब्ध करवा रहा है, दूध-सब्जी और फल आदि की मांग को पूरा कर रहा है। बाजार में मांग कम होने की वजह से किसान दूध-फल आदि को कौडिय़ों के भाव दे रहा है। किसान को सरसों व गेहूं की फसलें औने-पौने दामों पर बेचकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी पड़ रही है। इस हालात में किसानों को पैसे की अतिआवश्यकता है क्योंकि उन्होंने बैंकों की किस्त, आढती का पैसा और बच्चों की स्कूल फीस आदि का भी इंतजाम करना है।
इनेलो नेता ने बताया कि चुनाव के समय गठबंधन की सरकार ने बड़े बांगबुलंद वायदे किए थे कि किसान की फसल का एक-एक दाना खरीदा जाएगा और स्वामीनाथन रिपोर्ट की सभी शर्तों को लागू किया जाएगा परंतु किसान सरसों व गेहूं बेचने के लिए सुबह-सवेरे अनाज मंडी में लाइन में लगता है और शाम को खाली हाथ ही घर लौट जाता है। कहते हैं कि भाजपा-जजपा का वो वादा ही क्या जो वफा हो जाए। कभी तो खरीद एजेंसियों के अधिकारी नमी की मात्रा का बहाना बनाकर फसल खरीदने से इंकार कर देते हैं और कभी बारदाने की कमी बताकर फसलें लेने से इंकार कर देते हैं। सरकार की नीयत और नीति में अंतर है क्योंकि भाजपा-जजपा की सरकार किसान को वित्तीय तौर पर कमजोर करना चाहती है। मेरी फसल मेरा ब्यौरा की मार्फत फसलों का पूर्ण विवरण प्राप्त करके सरकार किसान को टैक्स आदि के दायरे में लाने की कोशिश कर रही हैं और दाल में कही न कही काला जरूर है।
उन्होंने कहा कि इस हालात में अगर सरकार ने कृषि की नीतियों में बदलाव नहीं किया और किसानों को प्रोत्साहित नहीं किया तो इन सब बातों का कृषि पर विपरीत असर पड़ेगा जिसका सीधा-सीधा असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। देश व प्रदेश की 63 प्रतिशत आबादी कृषि पर आधारित है और खेती से रोजग़ार के अवसर भी उपलब्ध होते हैं। पर दुख की बात ये है कि किसान की फसल के भाव ऐसी कमरों में बैठने वाले निश्चित करते हैं जिसकी वजह से कृषि दिन-प्रतिदिन घाटे का सौदा बनता जा रहा है। किसानों की वित्तीय स्थिति कमजोर होने का सीधा-सीधा प्रभाव देश व प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर दिखाई दे रहा है।