Dehradun,(सुभाष कुमार):कालजयी सिनेमाहॉल का स्वर्ण युग कहे जाने वाला प्रभात टॉकीज अब इतिहास के पन्नो में कही गुम होकर रह जायेगा।
अभी कुछ दिनों पहले’ ही कृष्णा पैलेस सिनेमा हॉल का दुखद अंत देखने को मिला था और अब देहरादून के बेहतरीन सिनेमा हॉल में शुमार प्रभात टॉकीज जिसे कभी लोग खड्डे वाला टाकीज के नाम से भी पुकारा करते थे आज इसका सिनेमायी सफर अब खत्म हो गया है।
जी हाँ! ये सच है सिनेमा हॉल का टूटना अब शुरू हो गया है। कुछ ही दिनों में प्रभात टॉकीज का वास्तविक रूप अब देहरादून के नक्शे से भी समाप्त हो जाएगा।
इस बात पर मुझे गुरुदत्त साहब की फ़िल्म कागज के फूल का वो गीत याद आता है — *बिछड़े सभी …बारी-बारी। हाय… देखी जमाने… की यारी।* ,
सिनेमा प्रमियों को इस बात का धक्का तो जरूर लगेगा पर कोई कर भी क्या सकता है। समय के बदलते परिवेश और कोरोना काल में ये तो होना ही था।
हालांकि सिनेमा हॉल के मालिक की ख्वाईश थी कि जब 1972 मैं राजकपूर निर्देशित व ऋषि कपूर डिम्पल कपाड़िया अभिनीत फिल्म बॉबी से प्रभात टॉकीज का सिनेमायी सफर शरू हुआ था उसी तरह बॉबी फ़िल्म को पुनः अपने थियेटर में चलाकर ही इस सिनेमा हॉल को बंद किया जाना था। परन्तु कोरोना काल के वजह से ये सपना पूरा ना हो सका।
एक समय था जब कोई अच्छी फिल्म यदि देखनी होती थी तो प्रभात टॉकीज में परिवार को साथ लेकर हम फ़िल्म देखने चले जाते थे। परन्तु वो दौर अब खत्म हो गया है बस उसकी यादें ही शेष रह गई है।
मुझे याद है कि 1982 का वो दौर था जब मेरी उम्र 12-13 साल की थी। हमारे समय ना तो मोबाइल था, ना ही टीवी पर कोई अच्छा प्रोग्राम हुआ करता था। बस ले देकर चित्रहार व रविवार के दिन शाम को 4 बजे फीचर फ़िल्म आती थी। उन दिनों हमारे सुपर हीरो कार्टून के हीरो ना होकर बॉलीवुड के हीरो हुआ करते थे जिनमें धर्मेंद्र, जितेंद्र अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना व शत्रुघन सिन्हा जैसे एक्शन हीरो का बोलबाला था। उस जमाने मे इनकी ज्यादतर फिल्मे प्रभात सिनेमाहॉल में ही लगती थी। वैसे तो उस समय कई सिनेमा हाल थे जो अब नही है जिनमे मुख्य रूप से सब्जी मंडी वाला फिल्मिस्तान सिनेमा हाल, रेलवेस्टेशन वाला लक्ष्मी टॉकीज,कनक टॉकीज व कैपरी सिनेमा हॉल हुआ करते थे।जिनमे नई फिल्मे कम और पुरानी रिलीज हुई फिल्में ही चला करती थी। लेकिन सबसे ज्यादा दर्शको का चहेता प्रभात टॉकीज ही था जिसमें अक्सर नई फिल्म हर शुक्रवार को रिलीज होती थी और जिसे देखने के लिये लोग दूर-दूर से आते थे।
उस वक्त सिनेमा देखने का एक दौर था। हर उम्र का बन्दा फ़िल्म देखने का शौकीन था, चाहे बूढ़ा हो या जवान या फिर बच्चे सभी पीढ़ी के लोगो मे सिनेमा को लेकर आकर्षण था। वो इसलिए भी था कि वो युग मोबाइल की दुनिया से कोसो दूर था। लोग इसे मनोरंजन के लिए सबसे बेहतर साधन मानते थे। लोगो के पास समय था आपस मे भाईचारा था।
एक समय था जब अमिताभ बच्चन की फिल्मे सबसे महंगी फ़िल्म होती थी। उस वक्त अपने थियेटर पर महंगी फ़िल्म चलाना बडा जोखिम था। लेकिन प्रभात टॉकीज में अमित जी की अधिकांश फिल्में जैसे राम बलराम,काला पत्थर,लावारिस,याराना,नमक हलाल, सत्ते पे सत्ता और कालिया, नास्तिक, महान उस समय अमित जी की बेहतरीन सभी फिल्मे प्रभात टॉकीज में लोगो ने खूब देखी। ग्रेट शो मेन कहे जाने वाले सुभाष घई की तकरीबन सभी फिल्मे हीरो, विधाता,राम लखन,सौदागर,परदेस व ताल ,किशना सहित बड़े बजट की सभी फिल्मे प्रभात टॉकीज में ही रिलीज हुई थी।
कहते है कि प्रभात टॉकीज में कई नामी फिल्मी हस्तियां भी इस सिनेमाहाल का हिस्सा रही थी।
सिनेमा हॉल में काम करने वाले कई लोगो का रोजगार इससे जुड़ा था। परन्तु आज इसके बन्द होने से सभी का रोजगार खत्म हो गया है।