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शिमला,(विजयेन्द्र दत्त गौतम): Covid-19 एवं लॉकडाउन के दौरान जहाँ एकतरफ घर से बाहर मज़दूर बेहाल भूख से तड़प रहे, घर जाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं व रोजी रोटी को मोहताज़ हो रहे हैं वहीं दूसरी ओर भाजपा शासित राज्य सरकारे बेशर्मी कि हद पार कर उद्योगपति एवं पूंजीपतियों को राहत पहुँचाने के लिए श्रम क़ानून को ताक पर रख राहत देने जुटी हुई है, यह बात अखिल भारतीय असंगठित कामगार कांग्रेस, राज्य महामंत्री व वरिष्ठ उपाध्यक्ष हि प्र इंटक राजीव राणा ने कही, राणा ने आरोप लगाया कि इन राज्यों की सरकार जिनमें हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश,बिहार,और ओडिसा आदि राज्य शामिल है द्वारा
इंडस्ट्रियल विवाद कानुन, इंडस्ट्रियल रिलेशन एक्ट, श्रमिक अनुबंध कानुन,को तीन वर्ष के लिए निरस्त करने की सिफारिश केन्द्र सरकार को की है । सभी प्रदेशो मे लागू श्रम अधीनियम कानून अधीकतर केन्द्रीय श्रम अधिनीयम कानून के तहत आते है।
देश मे उद्योगिक क्रांति पूर्व जिस तरह मज़दूरों को काम करने को मजबुर किया जाता था,उसी तरह इन राज्यों मे मज़दूरों के लिए भी वैसे ही हालात हो जायेंगे, जिससे मज़दूर बंधुआ मज़दूर बनने पर मजबूर हो जायेगें।
केन्द्र की मोदी सरकार अगर इन प्रावधान पर मुहर लगा देती है तो
मज़दूरों को काम की जगह जो
सुविधायें मिलती थी, वह निरस्त हो जायेगी,
>जैसे काम के जगह या फैक्टी में गन्दगी होने पर कार्यवाही से राहत मिलेगी,जिससे उद्योगपति को साफ सफाई पर ध्यान देने की जरुरत नहीं होगी।
>वेंटीलेशन व हवादार इलाके की जगह नहीं होने पर भी कार्यवाही नहीं होगी,
>किसी मज़दूर की कार्यस्थल तबियत खराब होने पर फैक्टी मैनेजर को संबंधित श्रमिक अधिकारी को सूचित करना अनिवार्य नहीं होगा ,
>काम के जगह शौचालय भी अनिवार्य नहीं होगा,महिला कामगारों के बच्चों के लिए पालना घर ( क्रेच ) की सुविधा तथा अलग बाथरुम एवं कॉमन रुम की सुविधाओं से महरुम होना पड़ेगा।
>ईकाईयां मज़दूरों को अपनी सुविधानुसार नौकरी मे रखेगी और निकाल भी सकेगी ,
कार्यस्थल की बदहाली पर अदालत कोई संज्ञान नहीं लेगी न ही अदालत में किसी प्रकार की चुनौती दी जा सकेगी ।राजीव राणा ने कहा मौजूदा क़ानून मे ये सभी बुनियादी सुविधाए उपलब्ध कराना उद्योगिक इकाई की कानूनन जिम्मेवारी थी।
लेकिन ये राज्य सरकारें उद्योगपतियों को उनकी जिम्मेदारी से मुक्त कर मज़दूर हितों के साथ धोखा करने का काम कर रही है। राणा ने ये भी कहा कि  इस बदली हुई परिस्थिति में भवन और निर्माण श्रमिक कानुन,बंधुआ मजदूरी विरोधी कानून,श्रमिक भुगतान कानुन की पांचवी सूची के अनुसार अब मज़दूरों को 8 घटे की जगह अब 12 घंटे काम करना पड़ेगा ।
देश मे करोना वायरस महामारी का बहाना बताकर श्रम क़ानून प्रावधानों को ताक मे रखकर मज़दूरों के अधिकारों पर कुठाराघात कर उद्योगपति व मालिकों को इन कानूनों मे छुट देकर मज़दूरों के अधिकारो का गला घोंट रही है। राणा ने आगाह किया कि
केन्द्र सरकार के किसी भी  मज़दूर हितों की अनदेखी के प्रयास पर केन्द्रीय श्रमिक संगठनों द्वारा जन आंदोलन के माध्यम से पुरजोर विरोध किया जायेगा।