देहरादून। दिल्ली में बिजली व पानी के चुनाव पर सकारात्मक प्रभाव के बाद उत्तराखंड में भी कई सगठनों ने यह माँग उठानी शुरू कर दी है। जबकि वनाधिकार आंदोलन के माध्यम से पिछले दो वर्षों से इन माँगों को लेकर हम आन्दोलनरत हैं। लेकिन हम मुफ्तखघेरी के पक्ष में नहीं है, हम तो क्षतिपूर्ति की बात कर रहे हैं। यह बात आज वनाधिकार आंदोलन से जुड़े पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय द्वारा कही गयी।  उन्हांेने कहा कि देश की आजादी के साथ ही हमें ये सहूलियतें मिलनी चाहिये थी। जब तक सरकारों ने हमारे जंगलों पर कब्जा नहीं किया था, पलायन दूरकृदूर तक नहीं था। भले ही हमारे पास 24 नाली जमीन रही हो लेकिन हम लोग सैकड़ों हेक्टेयर के मालिक थे। जंगल हमारी जिन्दगी थी। उसको हमसे छीन लिया गया और बदले में कोई क्षतिपूर्ति न दी गयी। उन्होने कहा कि हमारा गांव जंगलों के बीच है लेकिन हमें जंगल के निवासी नहीं माना जाता। अतः वनाधिकार आन्दोलन उस क्षतिपूर्ति को माँग रहा है। उन्होने कहा कि उत्तराखण्ड को वनवासी प्रदेश घोषित कर उत्तराखंडियों को केंद्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण दिया जाए। जब दिल्ली की सरकार उत्तराखण्ड का पानी दिल्ली की जनता को फ्री दे सकती है तो उत्तराखण्ड सरकार को भी जनता को निशुल्क पानी दिया जाना चाहिए। हमारे सारे ईंधन के कार्य जंगल से ही पूरे होते थे इसलिए 1 गैस सिलेंडर व हर महीने निशुल्क मिलना हमारा हक है। अपना घर बनाने के लिए हमे निशुल्क पत्थर बजरी लकड़ी आदि मिलना चाहिए तथा दिल्ली की तरह 500 यूनिट बिजली भी निशुल्क मिले। युवाओं के रोजगार के लिए उत्तराखण्ड में उगने वाली जड़ीकृबूटियों के दोहन का अधिकार स्थानीय समुदाय को दिया जाए। यदि कोई जंगली जानवर किसी व्यक्ति को विकलांग कर देता है या मार देता है तो सरकार को 25 लाख रु मुआवजा व पक्की सरकारी नौकरी देनी चाहिए। जंगली जानवरों द्वारा फसलों के नुकसान पर सरकार द्वारा तुरंत प्रभाव से 1500 रु प्रति नाली के हिसाब से क्षतिपूर्ति दी जाए। वन अधिकार अधिनियम 2006 को उत्तराखण्ड में लागू किया जाए। और उत्तराखण्ड को प्रति वर्ष 10 हजार करोड़ ग्रीन बोनस दिया जाए। प्रदेश में अविलम्ब चकबंदी की जाय। स्वास्थ्य व शिक्षा हर स्तर तक निशुल्क हो। तिलाड़ी काण्ड के शहीदों के सम्मान में 30 मई को वन अधिकार दिवस घोषित किया जाए।