वीएस चौहान की रिपोर्ट

फिल्मी दुनिया में अपने जमाने के सदाबहार हीरो जो अपने स्टाइल के लिए फेमस थे . उनके विशेष अंदाज के लिए  आज भी लोग याद करते हैं. गुजरे जमाने के एक्टर देव आनंद (dev anand)  उनका निधन 3 दिसंबर, 2011 को लंदन में हुआ था। देव आनंद अपने समकालीन एक्टर्स से हमेशा अलग थे। बॉलीवुड में कितने ही हीरो आए और चले गए, लेकिन ऐसे कुछेक ही हैं, जिनके किस्सों का जिक्र किए बिना हिंदी सिनेमा का इतिहास अधूरा रह जाएगा। देव आनंद भी ऐसे ही सितारों में से एक थे। उनका जन्म पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। देव आनंद को लेकर यूं तो कई किस्से मशहूर हैं, लेकिन इन सबसे खास उनके काले कोट पहनने से जुड़ा एक किस्से हैं। आपको बता दें कि कई सुपरहिट फिल्मों में काम करने वाले देव आनंद एक्टिंग करने के साथ ही कई हिट फिल्मों का डायरेक्शन भी किया।

अपनी बुलंदियों के दौर के समय वाइट शर्ट के  साथ ब्लैक कोट  उनकी अलग ही पहचान थी .देव आनंद ने एक दौर में व्हाइट शर्ट और ब्लैक कोट को इतना पॉपुलर कर दिया था कि लोग उन्हें कॉपी करने लगे। फिर एक दौर वह भी आया जब देव आनंद पर पब्लिक प्लेसेस पर काला कोट पहनने पर बैन लगा दिया गया।देव आनंद अपने काले कोट की वजह से बहुत चर्चा में रहे। सफेद शर्ट और काले कोट के फैशन को देव आनंद ने पॉपुलर बना दिया था। इसी दौरान एक वाकया ऐसा भी देखने को मिला जब कोर्ट ने उनके काले कोट को पहन कर घूमने पर पाबंदी लगा दी। इसकी वजह बेहद दिलचस्प और थोड़ी अजीब भी थी।

दरअसल, कुछ लड़कियों के उनके काले कोट पहनने के दौरान आत्महत्या की घटनाएं सामने आईं। ऐसा शायद ही कोई एक्टर हो जिसके लिए इस हद तक दीवानगी देखी गई उस जमाने की लड़कियां उनके लिए मर मिटने को तैयार रहती थी और कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा।

देव आनंद का असली नाम धर्मदेव पिशोरीमल आनंद था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर में पूरी की। देव आनंद आगे भी पढ़ना चाहते थे, लेकिन उनके पिता ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि उनके पास उन्हें पढ़ाने के लिए पैसे नहीं हैं। अगर वह आगे पढ़ना चाहते हैं तो नौकरी कर लें यहीं से उनकी सफलता का संघर्ष शुरू हो गया और यहीं से उनका और बॉलीवुड का सफर भी शुरू हो गया। 1943 में अपने सपनों को साकार करने के लिए जब वह मुंबई पहुंचे। तब उनके पास मात्र 30 रुपए थे और रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था। देव आनंद ने मुंबई पहुंचकर रेलवे स्टेशन के समीप ही एक सस्ते से होटल में कमरा किराए पर लिया। उस कमरे में उनके साथ तीन अन्य लोग भी रहते थे जो उनकी तरह ही फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।

करीब एक साल तक मिलिट्री सेंसर में नौकरी करने के बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास चले गए, जो उस समय भारतीय जन नाट्य संघ इप्टा से जुड़े हुए थे। उन्होंने देवानंद को भी अपने साथ इप्टा में शामिल कर लिया। इस बीच देवानंद ने नाटकों में छोटे मोटे रोल किए।

उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1946 में फिल्म हम एक है’ से की थी। इस फिल्म में वो हीरो बनकर परदे पर आए, हालांकि, फिल्म चल नहीं पाई। इसके बाद 1948 में आई ‘जिद्दी’, जिसने उनको हिट बना दिया। अपने पूरे फिल्मी करियर में उन्होंने लगभग 112 फिल्में की हैं।देव आनंद ने मुनीम जी, दुश्मन, कालाबाजार, सी.आई.डी, पेइंग गेस्ट, गैम्बलर, तेरे घर के सामने, काला पानी जैसी कई फिल्मों में काम किया। 1970 में फिल्म प्रेम पुजारी के साथ देव आनंद ने निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। 1971 में फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा का भी निर्देशन किया और इसकी कामयाबी के बाद उन्होंने अपनी कई फिल्में बनाई।