गैरसैंण में विधानसभा का बजट सत्र, सब कुछ ठीक चल रहा था, आम दिनों की तरह। शाम चार बजे वित्त मंत्री के रूप में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने वित्तीय वर्ष 2020-2021 का बजट पेश किया। विपक्ष तल्लीन, बजट में मीन मेख तलाशने में। तभी ऐसा कुछ हुआ, जिसका किसी को अंदाजा नहीं था।

बजट भाषण खत्म होता, इससे ठीक पहले मुख्यमंत्री ने ऐसा एलान का डाला कि पिछले पांच-छह सालों से सूबे में टूट और अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस को जोर का झटका बहुत जोर से जा लगा। मुख्यमंत्री ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा क्या की, विपक्ष कांग्रेस को मानों सांप सूंघ गया।

गैरसैंण में पहली कैबिनेट बैठक, फिर वहां हर साल विधानसभा सत्र की परंपरा, गैरसैंण में विधानसभा भवन समेत अन्य इमारतों का निर्माण शुरू कर कांग्रेस जनभावनाओं को समेटने की सोच ही रही थी कि एक झटके में पूरा श्रेय भाजपा ले उड़ी।

जग गई फिर लालसा

उत्तराखंड क्रांति दल, अलग पर्वतीय राज्य की अवधारणा के साथ ही इसका जन्म हुआ। राज्य आंदोलन में इसकी भूमिका काफी अहम रही लेकिन विडंबना देखिए, उत्तराखंड बनने के दो दशक बाद यह वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। मौजूदा दौर में तमाम राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने जनमत का भरोसा जीत सत्ता पाई, लेकिन उक्रांद के साथ इसका ठीक उलट हुआ।

दरअसल, सत्ता में हिस्सेदारी की इसके नेताओं की लालसा ही इसके इस अंजाम के लिए जिम्मेदार रही। पहले भाजपा के साथ पांच साल तक सत्ता का सुख लिया, तो अगली बार कांग्रेस की सरकार बनने पर उसके बगलगीर हो लिए।

यानी, सिद्धांत, विचारधारा, रीति-नीति गई, सब हुए दरकिनार, बस मात्र एक ही ध्येय, किसी तरह मंत्री की कुर्सी हासिल हो जाए। अब गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा क्या हुई, इसके नेताओं को मानों संजीवनी मिल गई। इन्हें कौन बताए, पब्लिक सब जानती ही नहीं, समझती भी है।

ऐसे कैसे ई कैबिनेट

प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने के लिए सूबाई सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सरकारी कामकाज को ऑनलाइन कर ई गवर्नेंस की शुरुआत कर दी। इस कड़ी में अब मंत्रिमंडल की बैठकें भी हाईटेक बना दी गई हैं। इसे नाम दिया गया है ई कैबिनेट। पिछले दो-तीन महीनों के दौरान कई ई कैबिनेट बैठकें हो चुकी हैं।

अब हाईटेक सरकार का दूसरा पहलू भी देखिए, जो आपको चौंका देगा। मुखिया जरूर टेक्नोसेवी हैं, सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म पर भी एक्टिव, लेकिन उनकी टीम के कई मेंबर इस मामले में फिलहाल फिसड्डी ही हैं। जब फोन पर संदेशों के आदान-प्रदान की सुविधा तक ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाते, तो ई कैबिनेट के लिए ऑनलाइन भेजे जाने वाले एजेंडे का कितना अध्ययन होता होगा, समझा जा सकता है। सरकार से मिलने वाले महंगे वाले लैपटॉप किस कोने में पड़े सुबक रहे होंगे, भगवान ही जानें।

मुन्ना रह गए मुन्ना

भाजपा के वरिष्ठ विधायक, संसदीय परंपराओं और ज्ञान के भंडार, नाम मुन्ना सिंह चौहान। अपनी पार्टी ही नहीं, विपक्ष वाले भी अकसर इनसे राय मशविरा लिया करते हैं। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से विधायक हैं। मुखर वक्ता हैं, हर विषय की अच्छी समझ रखते हैं तो पार्टी इनका इस्तेमाल मीडिया के समक्ष अपनी बात रखने के लिए करती है। इतने वरिष्ठ और योग्यता के हर पैमाने पर फिट, लेकिन आज तक मंत्री बनने का मौका नहीं मिल पाया।

भाजपा सत्ता में आई तो उम्मीद जगी, लेकिन पूरी नहीं हुई। अब इन दिनों मंत्रिमंडल विस्तार जल्द होने की संभावना है, लगा कि इस बार तो मुन्ना का नंबर आ ही जाएगा, लेकिन किस्मत है कि अब भी रूठी हुई है। पार्टी ने मंत्रिमंडल विस्तार से पहले उन्हें मुख्य प्रवक्ता का जिम्मा सौंप दिया। संकेत साफ हैं, इस बार भी मंत्री की कुर्सी दूर के ढोल ही रहेगी मुन्ना के लिए।