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Shimla: डॉ. परमार की ही देन है पूर्ण राज्य का दर्जा और आधुनिक हिमाचल यह बात भवन एवं अन्य सनिर्माण कामगार यूनियन इंटक प्रदेश अध्यक्ष व राज्य महामंत्री असंगठित कामगार कांग्रेस राजीव राणा(Rajeev Rana) ने डॉ. वाई.एस. परमार की पुण्यतिथि पर कही ।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. वाईएस परमार का सारा जीवन ईमानदारी से गुजरा और उन्होंने अपने लिए कोई संपत्ति नही बनाई, राणा(Rajeev Rana) ने बताया कि वह कुशल राजनेता के साथ-साथ कला व साहित्य प्रेमी भी थे. हिंदी, अंग्रेजी व ऊर्दू भाषाओं पर कमाल का ज्ञान रखने वाले डॉ. परमार हमेशा जमीन से जुड़े ठेठ पहाड़ी ही बने रहना पसंद करते थे. वे देहरादून में थियोसॉफिकल सोसायटी के सदस्य भी रहे. गुलाम भारत में रियासती समय में डॉ. परमार 1930 में सिरमौर रियासत के जज बने. सात साल तक न्यायाधीश के तौर पर काम किया.

 

बाद में डिस्ट्रिक्ट व सेशन जज बने और 1941 तक इस पद पर रहे.हिमाचल में जब राजशाही के खिलाफ प्रजामंडल आंदोलन शुरू हुआ. इस आंदोलन के क्रांतिकारियों पर झूठे मामले बनाए जाने लगे तो परमार से रहा न गया. ये मामले डॉ. परमार की अदालत में आए तो उन्होंने आंदोलनकारियों के हक में फैसले देना शुरू किया.परमार की यह बात सिरमौर रियासत के राजाओं को नागवार गुजरी. राजाओं की नाराजगी देखते हुए परमार ने खुद ही न्यायाधीश के पद से इस्तीफा दे दिया और खुलकर राजशाही के खिलाफ बोलने लगे.

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राजीव राणा(Rajeev Rana) ने कहा कि प्रजामंडल आंदोलन के सफल होने के बाद डॉ. परमार वर्ष 1948 से 1952 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे.हिमाचल निर्माता के साथ राज्य के पहले सीएम थे ,डॉ. परमार 3 मार्च 1952 से 31 अक्टूबर 1956 तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. वर्ष 1956 में जब हिमाचल यूनियन टेरेटोरियल बना तो परमार 1956 से 1963 तक संसद सदस्य रहे. हिमाचल विधानसभा गठित होने के बाद वे जुलाई 1963 में फिर से मुख्यमंत्री बने.परमार ने ही 99पंजाब में शामिल कांगड़ा व शिमला के कुछ इलाकों को हिमाचल में शामिल करवाने में अहम भूमिका निभाई थी, जनवरी 1971 में हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और इसमें डॉ. वाईएस परमार का बड़ा योगदान था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिमला के रिज मैदान पर 25 जनवरी 1971 को हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा की थी. बाद में परमार ने वर्ष 1977 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.परमार ने एक महत्वपूर्ण पुस्तक पोलीएंड्री एन हिमाचल भी लिखी थी.

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राजीव राणा(Rajeev Rana) ने कहा कि डॉ. परमार किसानों के लिए देखे गए सपने, अधूरे हैं,शुरू की गई योजनाएं पूरी नहीं हुई,राणा ने आरोप लगाते हुए बताया कि उनके सपनों को प्रदेश सरकार पूरा नहीं होने दे रही है,प्रशासन की बेरुखी और लापरवाही के चलते अधिकतर किसान भवन खंडहर बन गए हैं. जो किसान भवन बचे हैं उन्हें अन्य विभागों को रेंट आउट किया गया है.कई फ्रूट प्रोसेसिंग प्लांट बंद पड़े हैं वहीं प्रदेश की जय राम सरकार किसानों व बागवानों का शोषण कर रही है न तो उन्हें उचित समर्थन मूल्य और न ही नुकसान पर कोई मुआवजा, आज किसान अपने हक़ के लिए सड़कों पर है।राजीव राणा ने डॉ. वाई. एस. परमार की पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर श्रद्धांजलि दी।