देहरादून: उत्तराखण्ड के वनों में लगी भीषण आग के साथ ही वनों का बड़े पैमाने पर व्यावसायिक दोहन हो रहा है। ऊँचाई की दुर्लभ जैव विविधता को भारी नुकसान हो रहा हैं। पेड़ों को कटर मशीन से काटने की नयी तकनीकि ने एक ही दिन में दर्जनों पेड़ काटकर जमीन में गिराये जा रहे हैं। उत्तरकाशी और टिहरी की अनेकों नदियों के सिरहाने पर वनों की इस तरह की बेधड़क कटाई से लगता है कि वन निगम को इसके लिये पूरी छूट मिली हुई है। क्योंकि वन विभाग अपने हरे पेड़ों की कटाई के लिये न तो चिंतित हैं और न ही समय-समय पर इसकी जांच कर पा रहा है।
वन विभाग को भागीरथी, जलकुर, धर्मगंगा, बालगंगा, अलंकनन्दा, पिंडर, मंदाकिनी, यमुना, टौंस के सिरहाने व इनके जल ग्रहण क्षेत्रों में काटे जा रहे विविध प्रजातियों के हरे पेड़ों की जांच कि लिये रक्षासूत्र आन्दोलन के संयोजक सुरेश भाई जांच के लिये निवेदन कर रहे हैं। उत्तरकाशी में हरुन्ता, चैरंगीखाल और टिहरी में भिलंगना व बालगंगा के वन क्षेत्रों में हरे पेड़ों का कटान हो रहा है। दुःख की बात है कि जब कोविड-19 के प्रभाव से लोग सड़कों पर उतरकर हरे पेड़ों की कटाई का विरोध करने में असमर्थ हो, तो ऐसे वक्त का लाभ उठाने के लिये वन निगम का मालामाल होने का सपना पूरा हो जायेगा, और इसके बदले उत्तराखण्ड हिमालय में बाढ़ एवं भूस्खलन के खतरे के साथ जल स्रोतों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
ऊँचाई की जैव विविधता जैसे राई, कैल, मुरेंडा, देवदार, बांझ, बुरांस, खर्सू मौरू आदि के वनों को बेहद नुकसान पहुचाया जा रहा है। जंगल क्षेत्र से सड़कों तक रातों-रात हरे पेड़ों के स्लिपर रायवाला पहुंच रहे हैं। सैकड़ों ट्रक ढुलान में लगे हुये हैं। वनों के इस व्यावसायिक दोहन से जंगल के जानवर, जड़ी बूटियों आग और कटान दोनों से वर्तमान में प्रभावित है। अतः वनों को बचाना सरकार की प्राथमिकता हो। प्रमुख वन संरक्षक, उत्तराखण्ड को जांच के लिए पत्र भेजा जा रहा है