अफगानिस्तान के तालिबान का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल बुधवार को इस्लामाबाद का दौरा करेगा। पाकिस्तानी पीएम इमरान खान के निमंत्रण पर तालिबान पाकिस्तान का दौरा कर रहा है। तालिबानी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व उसके उप-नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर करेंगे। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि तालिबानी प्रतिनिधिमंडल इस्लामाबाद में पाकिस्तानी पीएम इमरान खान से मुलाकात करेगा या नहीं।

एक तरफ तो पाकिस्तान अपने देश में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कहता है और दूसरी ओर वह अपने देश में तालिबान के आकाओं की आगवानी कर उनसे बातचीत करने जा रहा है। ये आतंकवाद पर पाकिस्तान के दोहरे रवैये की पोल खोल रहा है। पाकिस्तान एक आतंक परस्त देश है और वो किसी कदर आतंकवादियों को पनाह देता है ये किसी से नहीं छिपा है। पाकिस्तान ने  भारत के खिलाफ कई हमलों के लिए आतंकी भेजे हैं और आज भी पाकिस्तान इसी में जुटा हुआ है।

तालिबानी आतंकियों का समर्थक पाकिस्तान

1990 के दशक की शुरुआत में अफगानिस्तान के गृह युद्ध के बीच पाकिस्तान ने तालिबान का समर्थन किया था, जिसके बाद उसके समर्थन में तालिबान, अफगानिस्तान के अंदर फलता-फूलता रहा। अमेरिका और अमेरिकी समर्थित अफगान सरकार ने कई बार ये बात रही है कि पाकिस्तान ने तालिबानी आतंकवादियों के लिए अपना समर्थन बनाए रखा है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान में भारत के प्रसार को रोकने के लिए तालिबानी आतंकियों का सहारा लेता है। हालांकि पाकिस्तान ने हमेशा इस आरोपों से इनकार किया है।

भारत का तालिबान को लेकर रुख

तालिबान की बात की जाए तो वह पाकिस्तान के नजदीक है। इस वजह से तालिबान भारत के खिलाफ होने वाली गतिविधियों का कहीं ना कहीं हिस्सा जरूर बनता है। अगर भारत, पाकिस्तान के खिलाफ कुछ करता है ऐसे हालात में तालिबान भी हमारा दुश्मन हो जाएगा। ऐसा कहा जाता है कि अमेरिका और तालिबान के बीच शांति वार्ता में भारत की कोई भूमिका नहीं है लेकिन भारत अभी इसपर पूरी तरह से शांत बैठा है। भारत  अपने समय का इंतजार कर रहा है।

लेकिन भारत, अफगानिस्तान के विकास में लगातार सहयोग करता आया है। भारत ने बीते कई सालों से अफगानिस्तान में शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी तमाम मूलभूत सुविधाओं में सहायता दी है।

शांति वार्ता पर हो सकती है चर्चा

तालिबान के एक सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि तालिबान का प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान से मुलाकात में अमेरिका के साथ शांति वार्ता रद होने के पीछे के कारणों को बताएगा। अमेरिका और तालिबान ने कहा कि पिछले महीने वे कुछ अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों और अफगान सरकार के बीच चिंता के बावजूद एक समझौते पर पहुंचने के करीब थे। लेकिन इसी बीच एक अमेरिकी सैनिक की तालिबानी हमले में मौत के बाद वहां फिर से संघर्ष के हालात पैदा हो गए और इसने इस्लामी आतंकवादी गुटों के फिर से शुरू होने का रास्ता खोल दिया।

बता दें, काबुल में एक अमेरिकी सैनिक समेत 11 अन्य लोगों की मौत होने के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पिछले महीने तालिबान के साथ शांति वार्ता को रद कर दिया था।तालिबान के एक अधिकारी ने कहा कि तालिबान ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की हाल ही में न्यूयॉर्क में एक बैठक से पहले ट्रम्प के साथ मुलाकात करने की योजना बनाई, ताकि वह राष्ट्रपति को फिर से बातचीत के लिए मनाने की कोशिश करेंगे।