New Delhi,(विजयेन्द्र दत्त गौतम) भारतीय विज्ञान संस्थान  बेंगलुरु में श्वसन,  खांसी और श्वसन तंत्र से उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगों के आधार पर कोरोना वायरस के निदान के लिए एक उपकरण बनाया जा रहा है। इस उपकरण को मंजूरी मिलने के बाद इसे भारत वर्ष में प्रत्येक स्वास्थ्य संस्थान में उपयोग में लाया जाएगा | इस उपकरण की यह खासियत होगी कि इलाज के दौरान जांच किए जाने पर स्वास्थ्य कर्मियों को वायरस लगने का खतरा कम होगा। मौजूदा जांच विधि की तुलना में जल्द परिणाम सामने आ सकते हैं। आठ सदस्यीय टीम का उद्देश्य ध्वनि-विज्ञान में बीमारी के ‘बायोमार्कर’ का पता लगाने और उसकी मात्रा निर्धारित करना है। शोधकर्ताओं के अनुसार, महामारी के मामलों की संख्या बढ़ रही है और संक्रमण की सरल, किफायती और तीव्र तरीके से जांच किया जाना कई देशों में स्वास्थ्य क्षेत्र, नीति निर्माण और आर्थिक पुनरुद्धार की दिशा में एक महत्वपूर्ण घटक बना गया है। सूत्रों ने बताया, ‘‘बीमारी के प्रमुख लक्षणों में श्वसन संबंधी समस्याएं शामिल हैं और इस प्रस्तावित परियोजना का उद्देश्य इन श्वसन तरंगों में बीमारी के बायोमार्कर का पता लगाना और उनकी मात्रा का निर्धारण करना है।’’ सूत्रों के अनुसार, ‘‘ इस परियोजना में प्रतिभागियों के सांस लेने की आवाज, खांसी की आवाज, श्वसन तंत्र से उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगों को रिकॉर्ड करने की आवश्यकता होती है। संपूर्ण प्रक्रिया के लिए लगभग पांच मिनट की रिकॉर्डिंग समय की आवश्यकता होती है।’’ इस परियोजना की निगरानी आईआईएससी संकाय सदस्य श्रीराम गणपति द्वारा की जा रही है और यह परियोजना आंकड़ा संग्रह चरण में है और संभावित नैदानिक उपकरण के रूप में पूर्ण मंजूरी प्राप्त करने से पहले इसे एक प्रयोगात्मक प्रक्रिया से गुजरना होगा। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या बढ़कर 377 हो गई है जबकि बुधवार को इससे संक्रमित लोगों की संख्या 11,439 थी। इस समय कोरोना वायरस के 9,756 मरीजों का इलाज चल रहा है और 1305 लोगों को स्वस्थ होने के बाद अस्पतालों से छुट्टी दी जा चुकी है।