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-मोहिंदर नाथ सोफत

लगभग दो माह से तालाबंदी के चलते अपनी दांत की एक समस्या को लेकर पिछले कल अपने डेंटिस्ट डाक्टर सबलोक के क्लिनिक तक जाना पड़ा। तालाबंदी मे छूट के चलते मार्केट की चहल पहल फिर से लौटने लगी है। सरकार ने नागरिको को यह छूट कुछ सावधानियां बरतने के साथ दी है, ताकि उन सावधानियों के साथ हमारा कोरोना संक्रमण से बचाव हो सके। प्रशासन और चिकित्सक दो सावधानियों पर आग्रह पूर्वक जोर दे रहे है।
(1) घर से बाहर मास्क का प्रयोग करें
(2) दो गज की दूरी है जरूरी

परन्तु बहुत खेद के साथ लिख रहा हूँ कि हम यह दोनों सावधानियां खानापूर्ति के लिए कर रहे है। मानो संक्रमण का खतरा सरकार को है न कि हमें। अधिकांश लोगों ने मास्क लगा रखा है ,परन्तु नाक को ढकने से परहेज कर रखा है। बहुत से ऐसे भी मिले जिन्होने मास्क गले मे लटका रखा है। मै दावे से कह सकता हूँ कि केवल 10 से 15 प्रतिशत लोगों ने नियमानुसार मास्क का प्रयोग कर रखा था।

दुकानों के बाहर भी दूरी बनाने हेतु गोल चक्कर तो बना रखे है, परन्तु उनका प्रयोग नही किया जा रहा है। हम लोग इन सारी सावधानियों को लेकर कदापि उतने गंभीर नही है। बहुत लोगों के चेहरे मास्क से तो ढके थे परन्तु धूल से भी लथ-पथ थे। जबकि इन्हे हर रोज बदलना या धोना अति आवश्यक है। यह सब नियमानुसार करने के लिए आत्म अनुशासन का होना जरूरी है। सरकार हर जगह पुलिस को खड़ा नही कर सकती और न ही हर नागरिक पर अनुशासन का डंडा चला सकती है।

इन हालात को देख कर मुझे 30 साल से अधिक पुरानी घटना याद आ गई। हालांकि इसे मै पहले भी आपके साथ सांझा कर चुका हूं। परन्तु आज के सन्दर्भ मे भी वह घटना सटीक बैठती है। मै पंचकूला मे बस का सड़क किनारे इंतजार कर रहा था। उसी सड़क किनारे एक नौजवान हेलमेट बेच रहा था। मैने टाइम पास के लिए एक हेलमेट को परखना शुरू कर दिया। उठाते ही मेरे मुंह से निकला की यह तो बहुत ही हल्के मटीरियल का बना लगता है इससे सिर क्या बचेगा। नौजवान काफी हाजिर जबाब था एक दम बोला साहब मेरे हेलमेट सिर बचाने के लिए नही है यह पुलिस से और चालान से बचाने के लिए है। मैंने बात आगे बढाई कि क्या बिकते है। उसने जबाब दिया कि साहब बेच कर ही शाम को घर जांऊगा। बस ट्रेफिक पुलिस के दोस्त आने वाले है। मै अभी उसकी बात का अर्थ समझने का प्रयास कर ही रहा था कि ट्रेफिक पुलिस की गाड़ी आ गई। फिर सब कुछ समझ आ गया। जो भी बिना हेलमेट से पकड़ा जाता उसे कहा जाता कि या तो हेलमेट खरीद लो अन्यथा चालान कटवा लो। कमाल का तालमेल था ट्रेफ़िक पुलिस और हेलमेट विक्रेता मे। तालमेल की कहानी तो आप समझते ही होगें।

आज मास्क भी अधिकतर पुलिस के डर से लगाये लग रहे थे न कि संक्रमण से बचने के लिए। यदि किसी से सावधानियों को लेकर बात करो जवाब साफ और सीधा है क्या करना जी ,जो होना है वह तो होकर ही रहना है। अब इसे आप भगवान पर विश्वास समझो या अंध-विश्वास।