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न्यूयॉर्क,(विजयेन्द्र दत्त गौतम): विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा अपनाई गई रोग नियंत्रण रणनीतियों से कोरोना वायरस जैसे संक्रामक रोगों का विकास क्रम बदल सकता है।एक अध्ययन में यह बात कही गई है। पीएनएएस पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में किसी विषाणु के लंबे समय तक बने रहने की स्थिति में लोगों में उसके गोपनीय तरीके से प्रसार के अच्छे और बुरे पहलुओं का अध्ययन किया गया है।अमेरिका के प्रिंसटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, दुनियाभर में सार्स-सीओवी-2 इतनी तेजी से इसलिए फैला क्योंकि इस विषाणु में उन लोगों के माध्यम से भी अपना प्रसार करने की क्षमता थी जिनमें संक्रमण के लक्षण नहीं देखे गए।उन्होंने कहा कि इस शोध से यह पता चल सकता है कि जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ कैसे पृथक रहने, जांच करने और संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने जैसे रोकथाम संबंधी कदमों की योजना बना सकते हैं।

 

ऐसी रणनीतियां रोगजनक विषाणुओं के विकास क्रम को भी बदल सकती है।प्रिंसटन विश्वविद्यालय के अध्ययन के सह-लेखक ब्रायन ग्रेनफेल ने कहा, ‘‘विषाणु के बिना लक्षण वाले स्तर से, विभिन्न कारणों के चलते रोगाणुओं को फायदा मिल सकता है। कोविड-19 महामारी में मरीजों में लक्षण न दिखने वाले स्तर की महत्ता अत्यधिक प्रासंगिक हो गई है क्योंकि यह अत्यंत खतरनाक भी है।’’कोविड-19 वैश्विक महामारी का उदाहरण देते हुए शोधकर्ताओं ने कहा कि जिन संक्रमित लोगों में लक्षण नहीं दिखाई देते, वे सामान्य दिनचर्या अपनाते हैं, कई संवेदनशील लोगों के संपर्क में आते हैं। वहीं जिस व्यक्ति को बुखार और खांसी जैसे लक्षण हैं वह अपने आपको घर में अलग रखता है।शोधकर्ताओं ने कहा कि रोकथाम की इन रणनीतियों के नकारात्मक पहलू भी हैं।उन्होंने कहा कि प्रथम चरण में भले ही संक्रमण के लक्षण नजर न आएं लेकिन दूसरे चरण में लक्षण साफ उभर आते हैं।