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रुद्रपुर,। भारत में प्रोस्टेट कैंसर तेजी से बढ़ती हुई स्वास्थ्य चिंता बन रहा है, खासकर बड़े शहरों में जहां यह पुरुषों में सबसे आम कैंसरों में से एक है। इसकी गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि इसे किस समय पर पहचाना गया। 45-50 वर्ष की उम्र में एक साधारण रक्त जांच पीएसए बीमारी की दिशा बदल सकती है। यदि कैंसर शुरुआती अवस्था में पकड़ में आ जाए, तो 5 साल की सर्वाइवल रेट लगभग 99 प्रतिशत होती है, जबकि देर से पता चलने पर यह मात्र 32 प्रतिशत तक गिर जाती है।
मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत के यूरोलॉजी, किडनी ट्रांसप्लांट एवं रोबोटिक सर्जरी विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. अमित सिंह मल्होत्रा ने बताया कि “कई पुरुष शुरुआती प्रोस्टेट कैंसर के समय बिल्कुल सामान्य महसूस करते हैं, क्योंकि इस स्टेज पर कोई स्पष्ट लक्षण नहीं होते। जब तक पेशाब में रुकावट, दर्द या अन्य समस्याएँ दिखाई देती हैं, तब तक कैंसर अक्सर फैल चुका होता है। इसलिए 45 वर्ष की उम्र पर स्क्रीनिंग एक महत्वपूर्ण बेसलाइन तैयार करती है। भले ही पीएसए का स्तर सामान्य हो, इसका आगे बढ़ने का पैटर्न डॉक्टरों को भविष्य का जोखिम समझने में मदद करता है। यही वजह है कि पीएसए का अचानक 0.5 से 2.0 तक बढ़ना, किसी स्थिर 2.0 रीडिंग से कहीं अधिक चिंता का विषय है।
जिन व्यक्तियों के परिवार में कैंसर का इतिहास है, उनके लिए 45-50 वर्ष पर स्क्रीनिंग और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि इससे कैंसर अक्सर अपने सबसे शुरुआती और इलाज योग्य चरण में पकड़ा जाता है। शुरुआती पहचान होने पर उपचार विकल्प भी अधिक और सरल होते हैं कृ जैसे कम इनवेसिव रोबोटिक सर्जरी या सिर्फ निगरानी (एक्टिव सर्विलांस)। इससे एडवांस स्टेज के इलाज में होने वाली समस्याएं जैसे यूरिनरी इनकॉन्टिनेंस या इरेक्टाइल डिसफंक्शन से काफी हद तक बचाव होता है। आखिर में डॉक्टर के दृष्टिकोण से फैसला बिल्कुल साफ है, 45 वर्ष की उम्र में एक साधारण ब्लड टेस्ट आपको 99 प्रतिशत तक जीवन बचाने का मौका देता है। जिसे हम देख नहीं पाते, उसका इलाज नहीं कर सकते। स्क्रीनिंग वह रोशनी है जो इस छिपी हुई बीमारी को समय रहते सामने ले आती है।