शिमला ,(विजयेन्द्र दत्त गौतम) : अखिल भारतीय असंगठित कामगार कांग्रेस हिप्र के महासचिव राजीव राणा ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का स्वागत किया है। जिसमे नशीली दवाओं पर अंकुश लगाने संबंधी एनडीपीएस कानून को और सख्त बना दिया गया है। वीरवार को सर्वोच्च न्यायालय ने नशीली दवाओं के संपूर्ण मिश्रण की मात्रा से सजा का निर्धारण तय किया है। राजीव राणा ने बताया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार अब इस कानून के तहत प्रतिबंधित नशीले पदार्थ की शुद्धता नहीं बल्कि इसके संपूर्ण मिश्रण की मात्रा से सजा का निर्धारण किया जाएगा। उन्होंने कहा कि लम्बे समय से हि प्र समेत पुरे देश में इस क़ानून को सख्त बनाए जाने की भारी आवश्यकता थी। उड़ता पंजाब की तर्ज पर हिमाचल प्रदेश के युवा लगातार नशों का शिकार हो रहे थे और नशा तस्करों के हौंसले एक सख्त क़ानून के अभाव में बुलंद थे। उन्होंने कहा कि हालांकि प्रशासन नशा मामलों पर लगाम कसने को पुरी मुस्तैदी से जुटा हुआ था लेकिन न्यायिक प्रक्रिया में ढील के कारण असामाजिक तत्व आसानी से बचकर निकल जाते थे। राजीव राणा ने जानकारी देते हुए बताया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर न्याय किया है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह तय करने के लिए प्रतिबंधित नशीले पदार्थ में मिलाए गए अन्य पदार्थो के वजन को शामिल करना होगा कि नशीला पदार्थ निरोधक कानून के तहत कम मात्रा में था या फिर उसकी व्यावसायिक मात्रा थी। इस अधिसूचना में कहा गया था कि एक या एक से अधिक पदार्थो के मिश्रित होने वाले नशीले पदार्थ की मात्रा का निर्धारण करते समय दूसरे पदार्थो का वजन भी नशीले पदार्थ में शामिल किया जाएगा। पीठ ने कहा कि भारत में युवा पीढ़ी में मादक दवाओं के सेवन की लत बढ़ रही है और यह समाज के खिलाफ अपराध है जिससे सख्ती से निपटने की जरूरत है। न्यायालय ने कहा कि दो सदस्यीय पीठ का 2008 का निर्णय अच्छी व्यवस्था नहीं थी। इस फैसले में पीठ ने कहा था कि प्रतिबंधित पदार्थ की मात्रा कम या व्यावसायिक होने का निर्धारण करने के लिए मिश्रित नशीले पदार्थ में प्रतिबंधित मादक पदार्थ का वजन ही प्रासंगिक है।
एनडीपीएस कानून के तहत व्यावसायिक मात्रा में मादक पदार्थ रखने की सजा कम मात्रा में इसे रखने की सजा से ज्यादा है। न्यायालय ने कहा कि गैरकानूनी तरीके से मिलने वाले नशीले पदार्थ अक्सर शुद्धता के साथ बेचे जाते हैं और हमेशा हेरोइन जैसे नशीले पदार्थ में कैफीन मिलाई जाती है जिससे हेरोइन धीरे-धीरे खत्म होती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि एनडीपीएस एक विशेष कानून है और इसका मकसद सराहनीय है। नशीले पदार्थ रखने और इसके सेवन के संदर्भ में न्यायालय ने कहा कि दोषी व्यक्ति को सलाखों के पीछे होना चाहिए और निर्दोष बाहर होना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि इस कानून के तहत मादक पदार्थो का धंधा करने की सजा एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन इसकी रोकथाम का हिस्सा ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस कानून का मकसद अपराध के बाद दोषियों को दंड देने के बजाय नशीले पदार्थों के गैरकानूनी धंधे की रोकथाम करना है।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, इंदिरा बनर्जी और एमआर शाह की पीठ ने केंद्र सरकार की 18 नवंबर, 2009 की अधिसूचना को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया।