हल्द्वानी – वैश्विक संकट कोरोना वायरस के संक्रमण से देश के कारागारों मे निरूद्व कैदियों का इस वायरस से संक्र्रमित होेने से बचाव के लिए माननीय सर्वोच्च उच्च न्यायालय द्वारा पहल की गई है। जानकारी देते हुये सिविल जज सीनियर डिवीजन इमरान मो0 खान ने बताया कि इस सन्दर्भ मे माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड द्वारा दिशा निर्देश जारी किए गए है।
इस क्रम में जिला जज/सदस्य सचिव उत्तराखण्ड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण उच्च न्यायालय डा0 जे.के. शर्मा ने बताया कि सात वर्ष या उससे कम सजा काट चुके कैदियों को पैरोल पर रिहा करने को लेकर उत्तराखण्ड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश ने राज्य मे एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था। इसमें न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, उत्तराखण्ड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यपालक अध्यक्ष, प्रमुख सचिव गृह, महानिदेशक कारागार को इस कमेटी के सदस्य बनाये गये हैं।
सर्वोच्च न्यायालय की ओर से गठित उच्च स्तरीय समिति द्वारा लिए गए निर्णयों की जानकारी देते हुये उन्होने बताया कि पैरोल या अन्तरिम जमानत का प्रार्थना पत्र जेल प्रशासन की ओर से राज्य सरकार या सम्बन्धित न्यायालयों को भेजे जायेंगे। यह फार्म आॅनलाइन भरे जायेंगे ताकि न्यायालयों तथा शासकीय कार्यालयों मे भीड-भाड न हो। जिला न्यायाधीश की ओर से लाभान्वित कैदियों के माध्यम से जमानत प्रार्थना पत्रों की आॅनलाइन सुनवाई के लिए व्यवस्था सुनिश्चित की जायेगी। सजायाप्ता और विचाराधीन कैदियों को पैरोल पर अन्तरिम जमानत उनके व्यक्तिगत बाॅंड पर बिना किसी बंधपत्र के दें ताकि सोशल डिस्टैनसिंग नीति का पालन किया जा सके।
उन्होने बताया कि जिलाधिकारी व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पैरोल पर रिहा होने वाले कैदियों को कारागार से उनके घर तक पहुचाने की व्यवस्था करेंगे। इससे सरकार की ओर से लाकडाउन और सोशल डिस्टैनसिंग की नीति का अनुपालन किया जा सके। जनपदों के मुख्य चिकित्साधिकारी पैरोल पर रिहा होने वाले कैदियों की पूर्ण चिकित्सकीय जांच करेें।