New Delhi,(विजयेन्द्र दत्त गौतम):  सुप्रीमकोर्ट ने उम्र कैद की सजा काट रहे 75 वर्ष या उससे ज्यादा आयु के कैदियों की सजा माफी संबंधी हरियाणा सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कानून के प्रावधानों के ‘विपरीत’ है। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से 2 सप्ताह के भीतर यह जवाब मांगा है कि क्या यह नीति संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत बनायी जा सकती है, क्योंकि न्यायालय को लगता है कि यह नीति आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 433-ए के विपरीत है। संविधान के अनुच्छेद 161 में जहां राज्यपाल को कुछ मामलों में सजा निलंबित करने, उसे माफ करने या उसमें बदलाव करने का अधिकार दिया गया है वहीं सीआरपीसी की धारा 433-ए में कुछ मामलों में राज्यपाल के इन अधिकारों पर पाबंदियां लगायी गयी हैं। जस्टिस यू. यू. ललित और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ एक आपराधिक मामले में अपील पर सुनवाई कर रही थी, उसी दौरान यह मामला सामने आया। इस दौरान पीठ को सूचित किया गया कि हरियाणा के राज्यपाल ने 15 अगस्त, 2019 को सजा काट रहे कुछ कैदियों की सजा माफ की है। नीति के अनुसार, यह विशेष सजा माफी सिर्फ उन्हें मिल सकती है जिनकी आयु 75वर्ष या उससे ज्यादा है और उन्हें उम्रकैद की सजा दी गई है तथा वे अपनी सजा के 8 साल पूरे कर चुके हैं। पीठ ने कहा, ‘पहली नजर में उक्त नीति सीआरपीसी, 1973 की धारा 433-ए के विपरीत लगती है।’
क्या कहती है सीआरपीसी की धारा 433-ए
सीआरपीसी की धारा 433-ए यह भी कहती है कि दोषी जेल से तब तक रिहा नहीं किया जा सकता, जब तक उसने कम से कम 14 साल की सजा पूरी न कर ली हो, यह प्रावधान उन कैदियों पर लागू होता है जिन्हें ऐसे मामलों में उम्रकैद की सजा दी गई है जिनमें अधिकतम मृत्युदंड का प्रावधान है या फिर जिसकी सजा मृत्युदंड से परिवर्रित होकर उम्रकैद बनी है।