वी एस चौहान की रिपोर्ट

2 अक्टूबर को अधिकतर लोग गांधी जयंती के रूप में जानते हैं लेकिन 2 अक्टूबर को  लाल बहादुर शास्त्री जी का भी जन्म हुआ था। हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री  सीधे, सरल,  सच्चे, व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे।वह सच्चे देशभक्त थे।देश के प्रधानमंत्री होने पर भी उन्हें रत्ती भर भी अभिमान नहीं था। इसी से जुड़ी उनकी एक कहानी प्रचलित है। बताया जाता है कि श्री लाल बहादुर शास्त्री साधारण परिवार से संबंध रखते थे।उनसे जुड़ी कहानी इस प्रकार है कि एक छोटे से परिवार में माँ के अलावा उसका इकलौता पुत्र था. जिसे वह प्यार से नन्हें कहती थी. एक बार नन्हें की माँ बीमार पड़ गई. नन्हें सब प्रकार से माँ की सेवा में जुट गया.
एक रात माँ ने पुकारा, ‘ बेटा ! मुझे प्यास लगी है।’ नन्हें तुरंत पानी का गिलास लेकर पहुंचा, लेकिन तब तक माँ की आँख लग चुकी थी.
बालक नन्हें ने माँ को जगाना ठीक नहीं समझा. वह पानी का गिलास लिए चुपचाप माँ के जागने की प्रतीक्षा करने लगा. बीमार माँ को अच्छी नींद आई और वह रात भर नहीं जागी.
सुबह जब माँ जागी तो उसने देखा कि उसका पुत्र पानी का गिलास लिए सिरहाने चुपचाप खड़ा है. माँ की आँखों में प्रेम के आँसू भर आये. माँ ने कहा, बेटा ! तू रात-भर मेरे लिए क्यों खड़ा रहा ?
नन्हें ने कहा, माँ ! तुम मेरे लिए सैंकड़ों बार रात-रात भर जागी हो, फिर मैं यदि तुम्हारे लिए एक रात जाग गया तो क्या हुआ ?
ऐसा मातृ-भक्त था बालक नन्हें. यही नन्हें बड़ा होकर लाल बहादुर शास्त्री के नाम से भारत का लोकप्रिय प्रधानमंत्री बना.
शास्त्री जी ने अपनी माँ को कभी नहीं बताया था कि वे रेल मन्त्री हैं. उन्होंने माँ से कहा था कि मैं रेलवे में नौकरी करता हूँ.
एक बार शास्त्री जी किसी कार्यक्रम में रेलवे भवन में आए तब उनकी माँ भी वहाँ पहुँच गयी कि मेरा बेटा भी यहाँ आया है, वह भी रेलवे में नौकरी करता है.
लोगों ने पूछा क्या नाम है तेरे बेटे का. जब उन्होंने अपने बेटे का नाम बताया तो सब आश्चर्य चकित रह गए. सुरक्षा अधिकारी बोले कि आप झूठ बोल रही हैं. पर वह बोली नहीं मेरा बेटा आया है.
सुरक्षा अधिकारियों ने लाल बहादुर शास्त्री जी के सामने ले जाकर पूछा, क्या वही आपके बेटे हैं? तब माँ बोली – हाँ, वही मेरा बेटा है.
तब उन्होंने मन्त्री जी से माँ को दिखाकर बोले- क्या वह आपकी माता जी हैं. तब शास्त्री जी ने अपनी माँ को बुलाकर अपने पास बिठाया और कुछ देर पश्चात् उन्हें घर भेज दिया.
तब पत्रकारों ने पूछा- आपने अपनी माँ के सामने भाषण क्यों नहीं दिया? तब शास्त्री जी ने कहा – मेरी माँ को नहीं पता कि मैं मन्त्री हूँ. यदि उन्हें पता चल जाये तो वह लोगों की सिफारिश करने लगेगी और मैं मना भी नहीं कर पाऊँगा, फिर उन्हें अहंकार भी हो जायेगा.
शास्त्री जी का ऐसा जवाब सुनकर सब स्तब्ध रह गये.