रोहतक। पबजी के चंगुल में फंस कर युवा अपना कॅरियर बर्बाद कर रहे हैं। कई परिवारों का भी सुख-चैन चला गया है। हरियाणा के रोहतक की एक कॉलोनी में हंसते-खेलते परिवार के होनहार बेटे को पबजी खेलने की लत लग गई। कभी मेरिट में आने वाला छात्र लगातार फेल होने लगा। परिवार तनाव में है। अपने बेटे को बर्बादी के कगार पर देखकर जरूरी कदम उठा रहे हैं।
रोहतक के झज्जर चुंगी क्षेत्र स्थित एक कॉलोनी में 19 वर्षीय युवक की मोबाइल पर गेम खेलने की आदत से घर की खुशियां बर्बादी में तब्दील हो गई हैं। सबकुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन बेटे को मोबाइल दिलाना परिवार के लिए भारी साबित हुआ। मजदूर मां-बाप का इकलौते बेटा व दो बहनों का भाई पबजी के फेर में बीटेक के अंतिम वर्ष में सात पेपर में फेल हो गया। यह वही छात्र है, जिसने 10वीं में मेरिट में स्थान बनाया था। मां ने बताया कि मोबाइल खेलने पर टोको तो गुस्सा होकर घर में रखी चीजों को इधर-उधर फेंकने लगता है। बेटे की फिक्र में मां अवसाद में चली गई। बीमारियों ने घेर लिया, कुछ दिन पहले ऑपरेशन भी हुआ है। घरवाले इस वजह से कुछ नहीं कहते कि जवान बेटा गुस्से में कोई गलत कदम न उठा ले।
पहली बार पता चला तो मां भी रह गई अवाक
युवक की मां ने बताया कि कुछ माह पहले रात के समय छत से तेज आवाज आने पर लगा कि चोर घुस आए हैं। दबे पांव सीढ़ियों से छत पर पहुंची तो पता चला कि बेटा मोबाइल में गेम खेल रहा है। साथ ही ‘मारो-मारो, वह बंदूक मेरी है, मैं भी इसी स्क्वायड में हूं। क्या कर रहे हो, देखो तुम्हारे पीछे दुश्मन हैं’ बेटा मोबाइल में देखते हुए यह सब बड़बड़ा रहा था। जब उसे ऐसा करने से रोका तो उसने गला दबोच लिया। छत से कूदने की धमकी देने लगा। यह देखकर मां को बहुत दुख हुआ। उन्होंने बताया कि बेटे को मोबाइल फोन दिलाने का फैसला गलत साबित हुआ।
मुश्किल से दिलाया था मोबाइल और लग गई गेम की लत
दसवीं में मेरिट और डिप्लोमा इंट्रेंस टेस्ट में अच्छी रैंक हासिल कर शहर के एक प्रतिष्ठित इंजीनिर्यंरग कॉलेज में युवक का दाखिला हुआ। कॉलेज के दूसरे साल में युवक ने माता-पिता से यह कहते हुए मोबाइल दिलाने को कहा कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए जरूरत है। मजदूर माता-पिता ने होनहार बेटे को किसी तरह आठ हजार रुपये का स्मार्टफोन दिलाया। यहीं से दिक्कत शुरू हो गई। अब युवक पबजी के चंगुल में ऐसा फंसा है कि परिवार वाले भी कॅरियर को लेकर टेंशन में हैं।
मोबाइल की लत एक तरह से बीमारी बन गई है। इसका एकमात्र समाधान काउंर्सिंलग है। परिवार वाले प्यार से बच्चों को काउंसलर तक ले जाएं। फिलहाल यह समस्या लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में ज्यादा है।