गुजरात की गिर वाइल्डलाइफ सेंचुरी के शेरों के भोजन को लेकर चौंकाने वाला खुलासा किया गया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) की ओर से किए जा रहे अध्ययन में पता चला है कि जंगल के राजा शेर मरे हुए मवेशियों को भी अपना निवाला बना रहे हैं। यह अध्ययन भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वाईवी झाला व डॉ. कौसिक बनर्जी आदि की ओर से किया जा रहा है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वाईवी झाला ने बताया कि सेंचुरी के बाहरी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में कांजी हाउस हैं। ऐसे में सेंचुरी में वास कर रहे 600 से अधिक शेरों में से 300 के करीब संरक्षित क्षेत्र के बाहर के जंगलों में विचरण करते हैं।
ऐसे में आसान भोजन की तलाश में शेर मरे मवेशियों का शिकार कर रहे हैं। करीब 90 फीसद शिकार मवेशियों का किया जा रहा है, जबकि 10 फीसद ही शिकार वन्यजीव बन रहे हैं। इससे इतर संरक्षित क्षेत्र में वास करने वाले 300 से अधिक शेर 90 फीसद वन्यजीवों का शिकार करते हैं और उनका 10 फीसद शिकार ही मवेशी हैं। साफ है कि जो शेर संरक्षित क्षेत्र से बाहर के जंगलों और आबादी के करीब विचरण कर रहे हैं, उनमें आसान शिकार की आदत पड़ने लगी है।
मरे मवेशियों से कैनाइन डिस्टेंपर वायरस का खतरा
डब्ल्यूआइआइ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. झाला ने बताया कि मरे हुए मवेशियों को खाने से शेरों के कैनाइन डिस्टेंपर वायरस के चपेट में आने का खतरा बढ़ गया है। पिछले साल ही इस वायरस से 29 शेरों की मौत हो गई थी। दरअसल, वायरस का खतरा तब बढ़ जाता है, जब शेर झुंड में मरे हुए मवेशियों को निवाला बनाते हैं। गिर के बाहरी क्षेत्रों में कांजी हाउस के मरे हुए मवेशियों को बिना उचित निपटान के फेंक दिया जाता है। इस स्थिति पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार से इसकी सिफारिश भी की गई है।
गिर में क्षमता से अधिक हो गए शेर
गिर वाइल्डलाइफ सेंचुरी में शेरों की संख्या क्षमता से अधिक हो गई है। यहां करीब 350 शेरों के प्राकृतिक वास की क्षमता है। यही कारण है कि शेर संरक्षित क्षेत्रों से बाहर के वन क्षेत्रों और यहां से भी बाहर आबादी क्षेत्रों में धड़ल्ले से विचरण कर रहे हैं। इस पर वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. झाला का कहना है कि मध्य प्रदेश में 20-25 शेरों को शिफ्ट किया जाना है। इसके अलावा अन्य राज्यों के वन क्षेत्रों में भी शेरों को शिफ्ट किया जा सकता है।
भविष्य में मानव के साथ संघर्ष बढ़ने का अंदेशा
गिर के वन क्षेत्रों से बाहर आबादी में दिख रही शेरों की धमक से अंदेशा जताया जा रहा है कि भविष्य में शेरों का मानव के साथ संघर्ष बढ़ सकता है। यह संघर्ष मवेशियों के शिकार को लेकर अधिक दिख रहा है। क्योंकि शेर आमतौर पर मनुष्य पर हमला नहीं करते हैं। अचानक आमना-सामना होने पर ही वह मनुष्य पर हमला बोलते हैं।